सब जग होली या ब्रज होरा!
कहावत है कि भले ही पूरी दुनिया में होली का उत्सव 1 या 2 दिन मनाया जाए पर ब्रज में रंगों की धूम पूरे 40 दिन मचती है। फाल्गुन माह के आगमन के साथ ही ब्रजभूमि में होली का उल्लास छाने लगता है।
‘होली आई रे कन्हाई’ एवं ‘फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर’ जैसे लोकगीतों की गूँज से पूरा ब्रज क्षेत्र सराबोर हो जाता है।
नंदगाँव, बरसाना, गोकुल, मथुरा, बलदेव, रावल, फालैन, मुखरई, जाव में इस त्यौहार के विविध स्वरूप देखने को मिलते हैं।
बरसाना की लड्डू और लट्ठमार होली मशहूर है। बलदेव का हुरंगा अपनी रंग-बिरंगी बौछारों के लिए जाना जाता है। गोकुल की छड़ीमार और रावल की होली भी अद्भुत एवं अद्वितीय होती है।
उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ परिषद ने ब्रज होली की बेहतर व्यवस्था के लिए एक सटीक योजना तैयार की है।ब्रज होली में निम्नलिखित कार्यक्रम संपन्न होंगे:
14 मार्च: नंदगाँव में आमंत्रण उत्सव
14 मार्च: बरसाना में लड्डू होली
15 मार्च: बरसाना में लट्ठमार होली
16 मार्च: नंदगाँव में लट्ठमार होली
17 मार्च: रंगभरनी एकादशी पर वृन्दावन की होली
18 मार्च: गोकुल में छड़ीमार होली
20 मार्च: फालैन में होलिका दहन
22 मार्च: गोवर्धन में चरखुला नृत्य
22 मार्च: बलदेव में दाऊजी का हुरंगा
ब्रज क्षेत्र में होली का शुभारंभ ग्वालों को दिए जाने वाले परंपरागत निमंत्रण से होता है।उन्हें मिट्टी के पात्र में गुलाल, इत्र, खील व बताशों के साथ बरसाना एवं नंदगाँव आने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
बरसाने में लट्ठमार होली से पहले शाम के समय लड्डुओं की होली खेली जाती है। उसके बाद सभी श्रद्धालुगण मंदिर में एकत्रित होते हैं और फागुन से जुड़े हुए लोकगीत गाते हुए एक दूसरे पर लड्डुओं की वर्षा करते हैं।
रंगभरनी एकादशी के दिन वृन्दावन के बाँके बिहारी मंदिर में ठाकुर जी भक्तों के बीच पधारते हैं और रंगों की होली खेलते हैं।
गोकुल में छड़ीमार होली के पश्चात फालैन में पंडा द्वारा होलिका दहन संपन्न किया जाता है। रंग के अगले दिन मुखराई में चरखुला नृत्य का आयोजन होता है।
तो इस फागुन, ब्रज आइए और कृष्ण रंग में डूब जाइए!