कई सालों तक लगातार बड़े उद्योगों द्वारा कचरे के फेंके जाने एवं घाटों पर संपन्न होने वाले बड़े-बड़े अनुष्ठानों की वजह से गंगा का पानी पीने के योग्य नहीं रहा था।
लेकिन अब, कोरोना वायरस महामारी के कारण पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है।
दशकों बाद, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा परीक्षण के बाद हरिद्वार में हर-की-पौड़ी के पानी को ‘क्लोरीनीकरण के बाद पीने के लिए फिट’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
TOI की एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल में पानी के नमूनों में फेकल कोलीफॉर्म में 34% और जैविक ऑक्सीजन की में 20% की कमी देखी गई है।
इसके अलावा, 30 साल बाद कोलकाता के घाटों पर गंगा की डॉल्फिन भी देखी गई हैं!
अतः यह महत्वपूर्ण है कि हम इससे सीख लें और अपने पर्यावरण को फिर से प्रदूषित न करें।