कुम्भ मेला, विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक सम्मलेन है। यहाँ देश-विदेश से श्रद्धालु ही नहीं, कई सम्प्रदायों के संत-महात्मा भी पुण्यदायी स्नान के लिए आते हैं। उनकी अलौकिक वेशभूषा, भाव-भंगिमा एवं भजन-कीर्तन के साथ-साथ उनके माथे पर लगे हुए अलग-अलग आकृतियों व रंग के तिलक, अपने आप में न केवल ख़ास महत्व रखते हैं अपितु उनके बारे में बहुत कुछ बताते भी हैं।
तिलक लगाने की यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। हर संप्रदाय से जुड़े संतों के माथे का तिलक भी अलग होता है। इसका साक्षात दर्शन कुम्भ में किया जा सकता है।
संतों के दो मुख्य संप्रदाय हैं – शैव और वैष्णव। शैव यानि भगवान शिव की पूजा करने वाले संत त्रिपुंड आकार का तिलक लगाते हैं। इसी तरह वैष्णव संप्रदाय के संत भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु के उपासक होते हैं। वैष्णव संत उर्ध्व पुंड तिलक लगाते हैं।
रामानुजाचार्यों में माथे के बीच में श्री का तिलक और किनारे सफेद रंग की तिलक लगाने की परम्परा है। श्यामनंदी और निम्बार्कचार्य संप्रदाय के संत लाल श्री की जगह काली बिंदी लगाते हैं। इसमें कुछ संत सिर्फ काली बिंदी लगाते हैं तो कुछ बिंदी के साथ चंदन की धारियों को भी मस्तक पर सजाते हैं। स्वामी नारायण संप्रदाय से जुड़े संत केवल लाल बिंदी लगाते हैं।
इस्कान और योगदा सत्संग सोसाइटी से जुड़े संतों और श्रद्धालुओं के माथे पर लगाया जाने वाले तिलक भी अनोखा होता है। इस्कान से जुड़े श्रद्धालु माथे के साथ गले में भी तिलक लगाते हैं। इसके अलावा सन्यासी लोग भस्म का तिलक लगाते हैं और सामान्य संत चंदन और मलयागिरी का तिलक लगाते हैँ।